हमारा श्री रामाश्रम सत्संग में यह मत है कि गुरू की अद्धितीयता इस पर आधारित नहीं है कि परमात्मा इन ब्रह्मपुरूष के द्वारा अपने संदेश को जाहिर करता है वरन यह तो उनके द्वारा प्रेषित संदेश की विशिष्टता से जाहिर परमार्थ पर निर्भर करता है।
हमारा मत है कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा से मिलन की चिरकालीन यात्रा पर अग्रसर है। इस मार्ग पर चलते हुए मनुष्य परमात्मा का साक्षात्कार करता है और इस अवस्था में वह ‘पूर्ण पुरूष कहलाता है। कुछ चुनिंदा पूर्ण पुरूष ही आगे चलकर ब्रह्म पुरूष बनते हैं जो कि दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं और उन्हे परमात्मा प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर करते है।
ऐसे ही कुछ चुनिन्दा ब्रह्म पुरूष अपने बहुसंख्य अनुयायियों के साथ, जो कि संतमत में आस्था रखते हैं, श्री रामाश्रम सत्संग की विरासत का गौरवान्वित हिस्सा है।
(02/02/1873 – 14/08/1931)
परम संत महात्मा राम चन्द्र जी महाराज एक पूर्ण योगी, एक आदर्श गुरू और एक महान ब्रह्म वेता थे। महात्मा जी से पूर्व तो चक्र-भेदन की प्रभावशाली विद्या लगभग विलुप्त हो चुकी थी। यह महान विद्या केवल कुछ ही महानपुरूषों द्वारा जीवित रखी गई जिन्हे इसका ज्ञान था। अधिकांश व्यक्ति या तो इसे प्रचारित ही नहीं करना चाहते थे अथवा उन्होने कुछ चुने हुए शिष्यों पर ही इस विद्या को जाहिर किया। सूफी नक्शबन्दिया खानदान में यह विद्या सीना ब सीना स्थानांतरित की जाती है। परंतु धार्मिक मतभेद और सामाजिक बंधनों के कारण ना तो कोई हिन्दु किसी सूफी संत को गुरू स्वीकार कर सकता था और ना ही कोई सूफी संत सहजता से इस शिक्षा को किसी हिन्दु को प्रदान कर सकता था
श्री राम चन्द्र जी महाराज ने समाज और धर्म की परवाह किये बिना रहस्य में छिपी इस वास्तविकता से पर्दा उठाया और चक्र भेदन का ज्ञान परम पूज्य सद्गुरू मौलाना फजल अहमद खान साहब से प्राप्त किया। चक्रभेदन विद्या में पारंगत होने के बाद आध्यात्म विद्या सीखने के लिए अनिवार्य माने जाने वाले कठोर सिद्धान्तों और कठिन जीवन शैली को आपने सरल और सुगम बनाया ताकि साधारण जनमानव भी इससे लाभान्वित हो सके।
(07/10/1875 - 07/06/1947)
परम संत रधुवर दयाल जी महाराज परम पूज्य लाला जी महाराज के प्रिय छोटे भाई थे जिन्होने आपके मार्गदर्शन से ही इस मत में प्रवेश किया। चाचा जी महाराज भी मौलवी फजल अहमद साहब के ही शिष्य थे। संयोगवश, अपने निर्वाण से पहले मौलवी फजल अहमद खान ने चाचा जी महाराज को निर्देश दिया कि वे पूज्य लाला जी महाराज को उनके स्थान पर समझे और उनका मौलवी साहब के समान ही आदर व सम्मान करे। अपने गुरू के शब्दों को ध्यान में रखकर पूज्य चाचाजी महाराज पूज्य लालाजी महाराज के पुजारी बन गये। आप दोनो के बीच इतना गहरा अनुराग था कि लाला जी महाराज कहा करते थे ‘‘मेरे और नन्हे में कोई फर्क नही है (पूज्य लाला जी महाराज आपको प्यार से नन्हे कहा करते थे)। मै और नन्हे एक ही सिक्के के दो पहलू है। एक तरफ देखोगे तो मुझे पाओगे और दूसरी तरफ नन्हे को’’। परम पूज्य लाला जी महाराज के निवार्ण प्राप्ति के बाद परम पूज्य चाचा जी महाराज ने उनके मिशन को आगे बढाया और संतमत से जुडे सभी लोगो में आध्यात्मिक शिक्षा का प्रसार किया। वे बाद में कानपुर में रहने लगे और जरूरतमदों के उत्थान का कार्य करते रहे।
(15/10/1894 – 18/05/1970)
परम संत महात्मा श्री कृष्ण लाल भटनागर जी महाराज पूज्य लाला जी महाराज के सबसे समर्पित शिष्यों में से थे। आपने 1939 में अपने पूज्य गुरूदेव के संदेश को फैलाने के लिए रामाश्रम संत्संग, सिकंदराबाद की स्थापना की। अपकी प्रेम एवं कर्म और विचारों की शुद्धता से कई अनुयायी आकर्षित हुए जिनका आपने संतमत में स्वागत किया और आध्यात्मिक ज्ञान उन तक पहुचाया। आप अपने पूरे जीवन भर अपने गुरूदेव का कार्य बखूबी करते रहे। और 1970 में आपने निर्वाण प्राप्त किया
(01/01/1901 – 29/12/1987)
परम पूजय श्री श्याम लाल सक्सेना जी महाराज जो कि अपने शिष्यों के बीच प्रेम से पूज्य बाबू जी महाराज के नाम से जाने जाते थे का जन्म 20वीं सदी के आरम्भ हुआ था। परमपूज्य लाला जी महाराज के शिष्यों में आप उम्र में सबसे छोटे थे। सन 1931 में परम पूज्य लाला जी महाराज के निर्वाण प्राप्ति के बाद बाबू जी महाराज ने अथक परिश्रम से अपने गुरूदेव का संदेश उत्तरी एवं मध्य भारत में फैलाया। आपने 1963 में श्री रामाश्रम सत्संग, गाजियाबाद की स्थापना की।
(03/07/1931 – 09/02/2002)
डा0 आर0 के0 सक्सेना (पूज्य सेठ भाई साहब) पूज्य बाबू जी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे। परम पूज्य बाबू जी महाराज ने सन् 1981 में आपको एवं आपके छोटे भाई डा0 वी0 के0 सक्सेना को श्री रामाश्रम सत्संग का आचार्य घोषित किया। उस दिन से लेकर फरवरी 2002 में आपके निर्वाण प्राप्ति तक आपने सत्संग के सभी आदर्शो को कायम रखना। और पूज्य बाबू जी महाराज के उपदेशों का प्रचार प्रसार करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। आगे पढ़े...
(23/08/1933 - 25/07/2019)
डा0 वी0 के0 सक्सेना (दिन्नू भाई साहब) परम पूज्य बाबू जी महाराज के द्वितीय पुत्र हैं। आप परम पूज्य बाबू जी महाराज द्वारा सन 1981 में श्री रामाश्रम सत्संग के आचार्य घोषित किये गये। पूज्य सेठ भाई साहब के जीवन काल के दौरान आपने उनके साथ मिल कर पूज्य बाबू जी महाराज में आस्था रखने वाले अनुयायियों की संख्या को आगे बढाया और आपके बडे भाई के निर्वाण पश्चात आपने और भी परिश्रम से इस प्रयास को जारी रखा। आपने लखनऊ में ‘देवस्थली आश्रम’ का निर्माण करवाया जहा साप्ताहिक और वार्षिक सत्संग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। आपने कई आध्यात्मिक साहित्य भी प्रकाशित किया है जिन्होंने संत्मत को सुबोध और सुलभ बनाया। उनकी सूची वेबसाइट पर दी गई है। आगे पढ़े...