पूजा की विधि
आध्यात्मिक्ता की उच्चतम ऊचाईयों को छूने की शुरुआत अनुशासित जीवन शैली अपनाने से होती है। उससे व्यक्ति की परमात्मा के प्रति जागरुकता बढ़ती है। ‘आध्यात्मिक अनुशासन’ जीवन मार्ग के एक विशिष्ट भाग को गुरू की ओर व अंततः परमात्मा की ओर मुखातिब कर देता है। इससे व्यक्ति दैनिक जीवनचर्या में भी गुरू की उपस्थिति का अहसास कर पाता है। प्रत्येक पंथ नियमित जीवन जीने का एक विशिष्ट मार्ग बताता है। रामाश्रम सत्संग इस संबंध मे धार्मिक संस्कार, ध्यान और रीतियों के पालन पर जोर देता है।
आध्यात्मिक उन्नति के लिये परम पूज्य लाला जी महाराज और परम पूज्य बाबू जी महाराज के द्वारा बताये गये कुछ दिशा निदेर्शों को यहां सम्मिलित किया गया है।
जिज्ञासुओं के लिये दिशा निर्देश
(जिज्ञासु वह व्यक्ति है जिसने संतमत को पूरी तरह अपनाया नही है और अभी भी परमार्थ की खोज में है। वह कभी - कभी सत्संग में शामिल होता है और एक नियमित सत्संगी नहीं है। :-
- सुबह के वक्त बिस्तर पर ही बैठे-बैठे यह ध्यान करें कि आपके गुरूदेव आपके सामने बैठे हुये है और ख्याली तौर पर अपना सर उनके चरणों में रखें और यह प्रार्थना करें :-
- हे गुरूदेव ! मै आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ।
- मुझे यह आशीर्वाद दीजिये कि आज दिन भर भी मै किसी भी क्षण आपके ख्याल से वंचित न रहूँ।
- अपने सिलसिले के सभी बुजुर्गों को प्रणाम करता हूँ।
- दुनिया के सभी संतो के चरणों में प्रणाम करता हूँ।
- चारपाई से दाहिना पैर पहले नीचे रखें और कहें कि ‘हे गुरूदेव मेरी रक्षा करें’।
- अपने प्रातःकाल दैनिक क्रियाओं जैसे स्नान आदि के समय इन मंत्रों का बराबर उच्चारण करते रहें: ऊँ राम, राम राम, गायत्री मंत्र, दरूद शरीफ या काई अन्य श्लोक। यह शीध्र ही आध्यात्मिक अनुशासन का रूप लेकर आपके व्यवहार का नियमित हिस्सा बन जायेगा। धीरे - धीरे आप गुरू से सामिप्य अनुभव करने लगेगें जो कि गुरू के शब्द को आप पर जाहिर करने में सहायक होगा।
- प्रातः कालीन दिनचर्या से निवृत्त होकर सुबह की पूजा का आरंभ करें।
- पूजा के दौरान, ‘गुरू वंदना’ पढ़ते हुये गुरू की उपस्थिति का अनुभव करना चाहिये (‘गुरू वंदना’ डा वी. के सक्सेना द्वारा लिखित पुस्तक ‘पूजा की विधि’ में प्रकाशित है। यह प्रार्थना परम पूज्य लाला जी महाराज के समय से ही पढ़ी जा रही है।)
- तत्पश्चात् गुरू ने जो ध्यान विशेष रूप से बताया है उसे करना चाहिए। शुरूआत में 15 मिनट ध्यान करना चाहिये। रामाश्रम सत्संग में ध्यान ही अध्यात्म का सार है जो कि ईश्वर अनुभूति का प्राथमिक मार्ग है।
- सायं काल की पूजा की शुरूआत गुरू वंदना से करें। बाद में प्रातःकालीन पूजा के क्रम को दोहराये।
अभ्यासियो के लिये दिशा निर्देश -
(अभ्यासी वह है जिसने संतमत को पूरी तरह से अपना लिया है और संतमत के नियमों और निदेर्शों का पालन करता है।)
- आदर्श रूप में हर अभ्यासी के लिये पूजा का निश्चित समय और स्थान होना चाहिए। यदि संभव हो तो अभ्यासी को उसी समय पूजा करनी चाहिये जिस समय गुरूदेव पूजा करते हैं, जिससे कि अधिक से अधिक गुरू कृपा का लाभ प्राप्त हो सके।
- अभ्यासी को लगभग 30 मिनट का ध्यान करना चाहिये।
- ध्यान समाप्ति के बाद अपने गुरू के लिये माला जाप करना चाहिए। गुरू के जीवनकाल के दौरान ऊँ का वरन गुरू के निर्वाण प्राप्ति के बाद ऊँ शान्ति का जाप करना चाहिए। माला जाप का उद्देश्य यही है कि अभ्यासी दिनभर में जहां भी जाये माला उसे पूजा के प्रति सजग रक्खे
- सांकालीन पूजा के दौरान बुजुर्गों की जीवनी और प्रवचन का अनुश्रवण करना चाहिये।
- अंत में सिलसिले के कम से कम एक बुजुर्ग के लिये ऊँ शांति का जाप करना चाहिये।
- शरीर और आत्मा की समृद्धि के लिये दिनभर मे जब भी भोजन ग्रहण करें, इसे गुरू को अर्पित करना चाहिये और परमात्मा को इसके लिये धन्यवाद करना चाहिये।
साधकों के लिये दिशा निर्देश -
(नियमित सत्संगी जो दीक्षा प्राप्त कर चुके हैं, साधक कहलाते है) एक व्यवस्थित एवं प्रतिवद्ध दृष्टिकोण आध्यात्मिक जीवन जीने के लिये ....
जिज्ञासु और अभ्यासी को बताये गये पूजा के तरीकों के साथ - साथ साधक को निम्नलिखित शगल का पालन करना चाहिए
- साधक को सूर्योदय से पहले उठना चाहिये।
- उपरोक्त बताये गये पूजाक्रम से अच्छी तरफ अभ्यस्थ होने के बाद साधक को आदर्श रूप में कम से कम एक घण्टे ध्यान करना चाहिये।
- पूजा का समापन ‘शजरा’ पढ़ने से करना चाहिये। शजरा डा वी. के सक्सेना द्वारा लिखित पुस्तक ‘पूजा की विधि’ में प्रकाशित है।
- साधक को अपने गुरू की बातों और उपदेशों को समय समय पर अपने दैनिक क्रियाकलपों के दौरान याद करना चाहिये और खाली समय में जाप करना चाहिये। सभी निरर्थक बातों को त्याग साधक के चित्त में हमेशा गुरू की आकर्षक और प्रेरणादायी छवि उपस्थित होनी चाहिये।
- सोने से पहले साधक को कम से कम 5 मिनट के लिये बिस्तर पर बैठकर ध्यान करना चाहिये और दिनभर जाने अनजाने में हुई कोई भी गलती के लिये क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। तत्पष्चात् यह ख्याल करके कि मेरा सिर गुरूदेव की गोद मे है, सो जाये।
- हमेशा यह सुनिष्चित करें कि भोजन सिर्फ हक हलाल व मेहनत की कमाई का ही हो। सादा भोजन करें। व्यक्ति को यह हमेशा ध्यान रखना चाहिये कि अनुशासन के यह अभ्यास ‘इच्छाशक्ति’ के साधन नही हैं वरन यह तो ‘समर्पण’ के उपकरण है।
- हम रामाश्रम सत्संग में यह आस्था रखते हैं कि परमात्मा प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिये सतत प्रयास और सहनशीलता जरूरी है। उपरोक्त संत मत के नियमों का पालन व्यक्ति को पूर्ण मनोयोग और समर्पण भाव से करना चाहिये।
नोट:- इस संदर्भ में अधिक जानकारी के लिये डा वी के सक्सेना से व्यक्तिगत रूप से संपर्क किया जा सकता है।