श्रीरामाश्रम सत्संग

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हम संतमत से जुडे हैं जो कि संतों का मत है......

हम संतमत से जुडे हैं जो कि संतों का मत है...... आधुनिक युग के परिदृष्य में, यहां भ्रष्टाचार अनियंत्रित रूप से बढ़ रहा है और लोगो में परमात्मा के प्रति आस्था की कमी हो रही है संतमत परमात्मा प्राप्ति यद्यपि कि कठिन है, का एक सुसंगत एवं सुलभ मार्ग बताता है।

श्री रामाश्रम सत्संग का मूल सिद्धान्त है आस्थाओं और संस्कृति का मिलन। उस निराकार परमात्मा की प्राप्ति के लिए दुनिया को त्यागने या एकांत प्राप्ति के लिए पहाडों व वनों में जाने के बजाय श्री रामाश्रम संत्संग ग्रहस्थ जीवन का पालन करते हुए सत्गुरू की मदद से परमात्मा प्राप्ति का मार्ग बताता है। श्री रामाश्रम सत्संग प्रारब्घ कर्म के साथ - साथ पात्रता एवं भक्ति को महत्व देता है (सीन-ब-सीना की धारणा)।

परम् पूज्य श्री रामचन्द्र जी महाराज ने जो कि परम पूज्य लाला जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध है, ने अपनी परमार्थ के प्रति समझ को अत्यिधिक प्रभावशाली तरीके से व्यक्त किया। जिसने आपको समस्त उत्तरी भारत में एक पूज्यनीय संत बना दिया। आपने संतमत की परम्पराओं को सभी अच्छाइयों और विविधताओं के साथ अपने शिष्यों में हस्तान्तरित किया। आपने अपने विचारों को संतमत द्वारा आगे बढ़ाया, जो कि श्रेष्ठ आध्यात्मिक सिद्धान्त प्राचीन भक्ति के तरीकों - ‘गुरू की सहायता से ध्यान व पूर्ण समपर्ण’ में आस्था रखता है। उनका मत था कि यह ही भक्तिमय जीवन में परमानंद को समाहित करने का एक मात्र साधन है।

पूज्य लाला जी महाराज ने एक नये मत और एक नये मार्ग का शुभारम्भ किया जो कि आगे चलकर एक दिन एतिहासिक परम्परा को जन्म देने वाला था। आपने किसी जाति या धर्म में भेदभाव न करते हुए अपनी परम आध्यात्मिक शक्तियों को व्यापक सद्भाव सहित अपने शिष्यों को प्रदान किया जिसने उन्हे परमात्मा प्राप्ति के लिए पूर्ण रूप से सजग कर दिया। आपने अपने अनुयायियों मानव जाति की प्रेम व समपर्ण के भाव से सेवा करने का सख्त निर्देश दिया और ‘आध्यात्मिक शक्तियों’ को सांस्सारिक सुख प्राप्ति के लिए उपयोग में लेने की धारणा की भत्सर्ना की। आपने उपदेश दिया कि गुरू के परिवर्तनकारी जीवन प्रेम से प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा व्यक्ति स्वयं को संसार की अनंत व विवशनीय इच्छाओं से मुक्त कर सकता है। पूज्य लाला जी महाराज उर्फ श्री रामचन्द्र जी महाराज एवं पूज्य चाचा जी महाराज उर्फ श्री रधुवर दयाल जी महाराज के सभी शिष्यों ने अपने अपने क्षेत्रों में काम किया और उन्होने अपने संत्संग का नाम अपने पूज्य सतगुरू के नाम पर रखा।

संतमत के मूल मंत्र के अनुसार गुरू ही नर रूप हरि है जो परमात्मा एवम जीव के बीच की एक कड़ी है। संसार का परमात्मा से सामंजस्य गुरू के अवतरण से ही है और उन्ही के द्वारा परमात्मा ने मानवता को स्वीकार किया है।

श्री रामाश्रम सत्संग, श्री राम चन्द्र जी महाराज के ही सिद्धान्तों पर आधारित है। श्री रामाश्रम सत्संग, गाजियाबाद के संस्थापक पूज्य डा0 श्याम लाल सक्सेना थे, जिनका प्रचलित श्रद्धेय नाम पूज्य बाबू जी महाराज है। आपने 7 जून, 1963 को रामाकृष्ण कालोनी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में अपने गुरू के मिशन को जरूरत मंद लोगो तक पहुचाने के लिए सत्संग की स्थापना की। आप पेशे से चिकित्सक थे और सेवा निवृत्ति के बाद आपने अपना पूरा समय परमार्थ और अनुयायियों के उद्धार में व्यतीत किया जिनकी लगातार बढ़ती हुई संख्या ने नियमित रूप से होने वाले ‘भण्डारो’ को भव्य स्वरूप दिया है। परमपिता परमात्मा की कृपा से सत्संग ने सफलता का नया आयाम स्थापित किया है जो कि ‘निरंतर परमात्मा प्राप्ति का संदेश’ पर आधारित है।