श्रीरामाश्रम सत्संग

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परम पूज्य डा0 श्रीकृष्ण लाल भट्टनागर जी महाराज (परम पूज्य ताऊ जी महाराज) से संपर्क

Shri Krishna Lal

परम पूज्य डा श्रीकृष्ण लाल भटनागर जी महाराज, जिन्हे प्रेमवश पूज्य ताऊ जी महाराज के नाम से हमारे सत्संगी परिवार में जाना जाता है, का पूज्य बाबू जी महाराज के जीवन पर अदभुत प्रभाव था।

पूज्य ताऊ जी महाराज तथा पूज्य बाबू जी महाराज दोनो लोग पूज्य लाला जी महाराज के शिष्य थे और आपकी सेवा में लगभग साथ ही साथ आये, संभवतः कुछ महीनों का अंतर रहा हो। आप दोनो की मुलाकात उन्ही महान संत के दर पर प्रथम बार हुई। यद्यपि पूज्य ताऊ जी आपसे उम्र में केवल साढ़े पांच वर्ष बड़े थे परन्तु पूज्य बाबू जी आपका ऐसा आदर करते थे जैसे वह बहुत बड़े हों। आपने उनको हमेशा बड़े भाई की तरह इज्जत दी। उस उत्कृष्ट आदरभाव का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने पूरे जीवन भर जब तक पूज्य ताऊ जी करवट बदल कर लेट नही जाते थे तब तक आप कभी चारपाई पर नहीं लेटते थे, आप दोनों मेडिकल की पढ़ाई के दौरान चार साल तक रूम पार्टनर थे। पूज्य ताऊ जी महाराज के निर्वाण के बाद , पूज्य बाबू जी महाराज ने वार्षिक दशहरा भण्डारा, गाजियाबाद का एक पूरा दिन आपको समर्पित किया था। आपकी दिव्य उपस्थिति एवं दया की बारिश आज भी हमें अभिसिंचित कर रही है।

सन 1915 से 1919 तक आप दोनों ही पूज्य पाद लाला जी महाराज से मिलने साथ ही साथ प्रायः फतेहगढ़ जाते थे। सन 1919 में जब आप दोनों ही उनके आदेश से आगरा मेडिकल कालेज में पढ़ने गये तो वहां कालेज में बाहैसियत रूम पार्टनर 1919 से 1923 तक रहे। उस दौरान आप दोनो का फतेहगढ़ जाना माह में एक बार जरूरहोता था। मेडिकल कालेज से उत्तीर्ण होने के बाद पूज्य ताऊ जी सिकन्दराबाद में प्राइवेट प्रैक्टिस करने लगे थे। सन 1929 में पूज्य बाबू जी महाराज की पोस्टिंग बुलंदशहर में हो गयी । उस समय सिकन्दराबाद नजदीक होने के कारण शनीवार इतवार खूब मिलना रहा और आप दोनो में प्रेम और भी ज्यादा बढ़ गया। उसके बाद, जब पूज्य बाबू जी का स्थानांतरण बरेली हो गया, तब सिकन्दराबाद में ही एक बहुत बड़ा मकान जिसको महल कहा जाता था और जो पूज्य ताऊ जी का पुश्तैनी मकान था इसी मकान में पूज्य बाबू जी का परिवार रहने लगा। इसी मकान में पूज्य छोटे भइया जी (पूज्य दिन्नू भाई साहब) की पैदाइश हुई और यहीं बाद में आपकी पूज्य माता जी, पूज्य बाबू जी महाराज की प्रथम पत्नी का स्वर्गवास हुआ था। इसी मकान में पूज्य ताऊ जी ने पूज्य बाबू जी के प्रेम के आवेश में आपकी माता जी को जो मौत से लड़ रही थीं उस समय दीक्षा दी थी। यह आपकी सर्वप्रथम दीक्षा थी। वह प्रथम शिष्या थीं। उसी समय उनकी बीमारी की शोचनीय दशा को देखकर और उनका बच्चों की चिन्ता को देखकर आपने वचन दिया था मै तुम्हारे बच्चों (पूज्य जिज्जी, पूज्य बडे़ भइया जी एवं पूज्य छोटे भइया जी) का आकबत तक ध्यान रखूंगा। इन्हे कोई तकलीफ न होने दूंगा।

ऐसे ही कई दृष्टांतो को पूज्य बाबू जी महाराज की जीवनी (अनमोल संत चरित्र) में अभिलेखित किया गया है जो इन महान हस्तियो के परस्पर प्रेम को दर्शाती हैं। सन 1954 में पूज्य ताऊ जी ने पूज्य बाबू जी को इजाजत ताअम्मा प्रदान किया जिसका लिखित आलेख अनमोल संत चरित्र मे प्रकाशित है। परम पूज्य ताऊ जी महाराज का पूरा जीवन अपने गुरूदेव की परमार्थिक विद्या को जरूरतमदों तक पहुचानें में समर्पित था। आपका निर्वाण 18 मई, 1970 हो हुआ। आपने रामाश्रम सत्संग, सिकन्दराबाद की स्थापना की जिसका मुख्यालय गाजियाबाद में स्थित है तथा वर्तनान अध्यक्ष पूज्य ताऊ जी महाराज के शिष्य श्री करतार सिंह जी है।