यह घटना 1915 की है जब हमारे संस्थापक परम पूज्य बाबू जी महाराज पू0 डा0 श्याम लाल सक्सेना की मुलाकात संयोगवश परम पूज्य लाला जी महाराज से हुई, जिन्होंने संतमत को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया और अनेकों को इस पावन पथ पर अग्रसर किया। अत्यन्त कठिन और संयमित आचरण के द्वारा इन सन्तों ने परमात्मा को प्राप्त किया और इस विद्या को अपने शिष्यों में (सीना-ब-सीना) हस्तान्तरित किया। संतमत मूलतः मानवता से जुडा है इस लिये समुदाय, रंग, जाति या धर्म में भेदभाव नही करताहै।
हमारा प्रकृति के इस नियम में विश्वास है कि परमात्मा प्रबुद्ध आत्माओं के माध्यम से अपनी बातों को मनुष्य तक पहुंचाता है। व्यक्तिगत या सामूहिक पवित्रता की भावना के अभाव में ‘‘विश्वास’’ को बनाए रखना बहुत मुश्किल है। हम ‘संतमत’ में इस विश्वास के समर्थक हैं कि एक नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए स्थूल रूप में एक गुरू का होना अनिवार्य है।
दूरियों के होते हुए भी अपना सतसंगी परिवार आपस में जुड़ा रहे इसीलिए हमने इन्टरनेट के माध्यम को उपयोग में लेने का निर्णय लिया है। हमारा यह प्रयास प्रचार करने के उद्देश्य से नहीं है। संतमत से जुडने के लिये गुरू से व्यक्तिगत संपर्क अवाश्यक है।
परमात्मा सबका भला करें....................
संतमत के मूल मंत्र के अनुसार गुरू ही नर रूप हरि है जो परमात्मा एवम जीव के बीच की एक कड़ी है। संसार का परमात्मा से सामंजस्य गुरू के अवतरण से ही है और उन्ही के द्वारा परमात्मा ने मानवता को स्वीकार किया है।