श्रीरामाश्रम सत्संग

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परम पूज्य रधुवर दयाल जी महाराज ( परम पूज्य चच्चा जी महाराज) से संपर्क

Raghbar Dayal

पूज्य बाबू जी जब 1915 में पूज्य लाला जी महाराज से प्रथम बार मिले थे उसी के कुछ दिन बाद आपने इन महापुरूष के दर्शन किये जब वे अपने बड़े भाई से मिलने के लिये फतेहगढ़ आए थे। पूज्य चाचा जी महाराज पूज्य लाला जी महाराज से उम्र में मात्र ढाई साल छोटे थे, फिर भी आप पूज्य लाला जी महाराज का अत्यधिक आदर करते थे। पूज्य लाला जी महाराज भी आपसे बहुत प्रेम करते थे और इसी प्रेमवश पूज्य लाला जी ने कई अवसर पर यह कहा कि ‘मेरे और नन्हे’ में कोई फर्क नही है (पूज्य लाला जी महाराज आपको प्यार से नन्हें कहा करते थे।) मै और नन्हे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक तरफ देखोगे तो मुझे पाओगे और दूसरी तरफ नन्हे को।

सन 1919 में जब पूज्य बाबू जी हेल्थ आफिसरी की ट्रेनिंग करने लखनऊ आये थे तो पूज्य चाचा जी से मिलने का सिलसिला बहुत बढ गया था। क्याकि कानपुर, जहां पूज्य चाचा जी महाराज का निवास स्थान था, लखनऊ से नजदीक था, पूज्य बाबू जी महाराज हर शनिवार को कानपुर पहुंच जाते थे और पूज्य चाचा जी महाराज बड़ी शफक्कत से पेश आते थे। यह सिलसिला बराबर चलता रहा।

सन 1925 से 1928 तक जब पूज्य बाबू जी की पोस्टिंग गाजीपुर में थी, तब भी आप हर तरह का जोखिम उठा कर चाहे पैसे हो या न हो, पूज्य चाचा जी महाराज से मिलने महीने में एक बार कानपुर जरूर जाते थे। परम पूज्य चाचा जी महाराज, पूज्य चाची जी साहब और आपके तीनो पुत्र पूज्य बृज माहन लाल जी, पूज्य राधे मोहन लाल जी एवं पूज्य ज्योति मोहन लाल जी आप से बहुत मोहब्बत करते थे। इत्तेफाक से एक दिन मिसराईन जो पूज्य चाचा जी महाराज के यहां खाना पकाती थी ने पूज्य चाचा जी से पूज्य बाबू जी के बारे में कहा कि ‘ यह लड़का आपकी बहुत खिदमत हर तरह से करता है।’ इस पर पूज्य चाचा जी ने फरमाया ये हमारे ही तो बच्चे हैं, जैसे बिरजु, मुंशी, ज्योती वैसे ये है । ऐसा निराला और प्रेममयी रिश्ता था पूज्य चाचा जी और पूज्य बाबू जी का। यह घटना और ऐसे ही कई दृष्टांतो को पूज्य बाबू जी महाराज की जीवनी (अनमोल सन्त चरित्र) में अभिलेखित किया गया।

पूज्य चाचा जी महाराज ने पूज्य बाबू जी को एक प्रेम भरा खत लिखा था जिसमें आपने कयाम किया कि तुमको इजाजत तालीम विरासत है और आपने यह दूसरे लोगों से भी कह दिया जिसके फल स्वरूप कुछ सत्संगी भाई पूज्य बाबूजी के यहां रोज सत्संग के लिये आने लगे। यह पत्र, जिसमें पूज्य चाचा जी ने पूज्य बाबू जी को इजाजत प्रदान की है कि एक प्रतिलिपि अनमोल संत चरित्र में प्रकाशित है। पूज्य चाचा जी महाराज की समाधि पूज्य बाबू जी के लिये एक धार्मिक स्थल था और आप बार बार अपनी श्रद्धॉजली अर्पित करने समाधि पर जाते थे। सन 1986 में जब पूज्य बाबू जी बहुत बीमार थे, उस समय आप पूज्य छोटे भइया जी (पूज्य दिन्नू भाई साहब) के गृह प्रेवेश के अवसर पर लखनऊ तशरीफ लाये थे। उस बीमार अवस्था में भी आप अगले ही दिन पूज्य चाचा जी महाराज की समाधी पर अपना सलाम पेश करने कानपुर गये। यह पूज्य बाबू जी का उनके जीवन का अंतिम प्रणाम था। पूज्य बाबू जी महाराज ने गाजियाबाद के चार दिवसीय वार्षिक दशहरा भण्डारा का दूसरा दिन पूज्य चाचा जी महाराज को समर्पित किया। पूज्य बाबू जी महाराज का पूज्य चाचा जी महाराज के लिये इस असीम प्रेम और आदर के कारण ही आज भी समस्त सत्संगी परिवार आपके फैज और प्रेम से लाभान्वित है।

पूज्य बाबू जी महाराज ने भण्डारे का एक दिन अपने पूज्य गुरूदेव को और साथ ही पूज्य चाचा जी महाराज, जो पूज्य लाला जी महाराज को अति प्रिय थे, को समर्पित किया है। इसके अतिरिक्त उन्होने एक पूरा दिन अपने गुरू भाई, पूज्य ताऊ जी महाराज को समर्पित किया है। यह अपने गुरू, चाचा गुरू एवं अपने गुरू भाई से अद्वितीय प्रेम का एक अनोखा उदाहरण है।